धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष की अवधि में पूर्वज कौए के रूप में धरती पर विचरण करते हैं और अपने पूर्वजों से मिलने आते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि शास्त्रों में इस बात का वर्णन मिलता है कि देवताओं के साथ-साथ कौए ने भी अमृत चख लिया था। जिसके बाद यह मान्यता प्रचलित है कि इस पक्षी की मृत्यु कभी भी प्राकृतिक रूप से नहीं होती है।
वहीं, गरुड़ पुराण के अनुसार कौवा यमराज का संदेश वाहक है। ऐसे में माना जाता है कि कौए को भविष्य में होने वाली घटनाओं का थोड़ा-थोड़ा आभास हो जाता है। साथ ही कौआ बिना थके लम्बी यात्रा तय कर सकता है और इसे अतिथि के आगमन का सूचक भी माना जाता है।
इन्हीं विशेष कारणों की वजह से किसी की भी आत्मा कौए के शरीर में वास कर के विचरण कर सकती है और यही कारण है कि पितृपक्ष में कौओं को भोजन कराया जाता है। इसके अलावा ऐसी भी मान्यता है कि कौवे को निवाला दिए बिना पितृ संतुष्ट नहीं होते।
Spiritual Places in the Mountains of India- Joshimath, Amarnath, Hemkund and more ...
Makar Sankranti 2023: Spiritual significance of Makar Sankranti in the vedic era & the cosmic ...
Diwali Special: तो इसलिए होती है दिवाली पर माता लक्ष्मी की पूजा,पढ़िए यह ...
Navratri 2022 6th Day: मां कात्यायनी को समर्पित है छठा नवरात्र, इस दिन ...